Amit ki Anokhi Duniya - 1 in Hindi Children Stories by Chhaya Dubey books and stories PDF | अमित की अनोखी दुनिया - 1

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अमित की अनोखी दुनिया - 1

 


                                                                          अमित की अनोखी दुनिया - कहानी 1: माँ की सीख


यह कहानी है अमित नाम के एक छोटे से बच्चे की, जो एक बड़े संयुक्त परिवार में रहता था। उसके घर में चाचा, दो बड़े ताऊ, दादा-दादी और ढेर सारे चचेरे भाई-बहन थे।

दादा जी और छोटे ताऊ खेती करते थे। बड़े ताऊ कॉलेज में प्रोफेसर थे, और चाचा वकालत की पढ़ाई कर रहे थे। अमित के पापा मुंबई में नौकरी करते थे। घर की सभी महिलाएं गृहिणी थीं, लेकिन अमित की माँ सबसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी थीं। उनका मायका भी पढ़े-लिखे लोगों का था, जहाँ ज़्यादातर लोग सरकारी अफसर थे।

अमित की माँ चाहती थीं कि उनका बेटा भी पढ़-लिखकर एक अच्छा इंसान बने — ऐसा इंसान जो दूसरों के लिए दयालु हो, समझदार हो।

एक दिन की बात
एक दिन माँ रसोई की खिड़की से बाहर देख रही थीं। दूर एक भूखा कुत्ता कुछ खाने की कोशिश कर रहा था। तभी अमित, न जाने क्यों, एक डंडा लेकर दौड़ा और उस बेज़ुबान जानवर को मारने लगा।

माँ का दिल काँप उठा, पर उस समय कुछ कह नहीं सकीं। गाँव का माहौल ऐसा था जहाँ बहुएँ ऊँची आवाज़ में बोल नहीं सकती थीं। कुत्ता चीखता हुआ वहाँ से भाग गया, और माँ की आँखों में आंसू आ गए।

थोड़ी देर बाद जब अमित माँ के पास आया और रोज़ की तरह उनसे लिपट गया, तो माँ ने प्यार से पूछा,
“बेटा, आज तुमने उस कुत्ते को क्यों मारा?”

अमित ने मासूमियत से कहा, “माँ, वो हमारे घर के बाहर खड़ा था!”

माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“बेटा, कोई भी जानवर या इंसान अगर हमें नुकसान नहीं पहुँचा रहा है, तो उसे मारना पाप होता है। हमें हर जीव से दया और प्रेम से पेश आना चाहिए।”

अमित को शायद सारी बातें पूरी तरह नहीं समझ आईं, लेकिन उसने एक बात गांठ बाँध ली — अब किसी को मारना नहीं है।

अगली बार जब दादी ने फिर से किसी कुत्ते को भगाने के लिए कहा, तो अमित ने साफ मना कर दिया।
“नहीं दादी, मम्मी ने कहा है किसी को मारना अच्छा नहीं होता। अब मैं नहीं मारूँगा।”

सर्दियों की एक दोपहर
ठंड का मौसम था। अमित और उसके चचेरे भाई-बहन अलाव के पास बैठकर मस्ती कर रहे थे। खेलते-खेलते एक चिंगारी पास बैठे चाचा के ऊपर गिर गई। चाचा को लगा कि यह शरारत मंटू ने की है — मंटू, जो प्रोफेसर साहब का बेटा था और अमित से थोड़ा छोटा था।

गुस्से में चाचा ने मंटू को एक थप्पड़ मार दिया।

लेकिन मंटू ने भी गुस्से में चाचा पर हाथ चला दिया! और मज़े की बात — चाचा ने कुछ नहीं कहा, बल्कि हँसते हुए बोले, “अरे! बड़ा शैतान है ये!”
क्योंकि मंटू, प्रोफेसर साहब का बेटा था।

माँ दूर से ये सब देख रही थीं। उन्हें यह बात चुभी — शायद कोई और बच्चा होता, तो सज़ा ज़्यादा होती।

माँ और अमित का टकराव
एक दिन माँ ने अमित को कुछ काम के लिए कई बार पुकारा, पर वह अपने खेल में मग्न था। माँ ने तेज़ आवाज़ में कहा, “अमित! सुनाई नहीं दे रहा क्या?”
अमित ने गुस्से से कहा, “नहीं!”

माँ को बहुत बुरा लगा। उन्होंने अमित का हाथ पकड़ा और अंदर खींचने लगीं। अमित को लगा जैसे कोई ज़बरदस्ती कर रहा हो, और उसने विरोध किया। माँ को गुस्सा आ गया, उन्होंने एक थप्पड़ जड़ दिया।

अमित ने भी पैर मार दिया।

पास खड़ी देवरानी मुस्कुरा दी। यह देख माँ का गुस्सा और बढ़ गया, और उन्होंने अमित की ठीक से धुलाई कर दी।

अमित ज़ोर-ज़ोर से दादाजी को बुलाने लगा। दादाजी आए और माँ को डाँटकर अमित को अपने साथ ले गए।

माँ को बहुत पछतावा हुआ। उन्हें लगा शायद उन्होंने ज़्यादा मार दिया।

कुछ देर बाद, अमित दादाजी के साथ फिर आया — इस बार उसके हाथ में एक डंडा था। उसने डंडा माँ के हाथ पर मारा। माँ की चूड़ी टूट गई, काँच चुभ गया और खून निकल आया। दादाजी अमित को वापस ले गए।

माँ चुपचाप दवा लगाकर अपने कमरे की सफाई करने लगीं। तभी पीछे से अमित दौड़ता हुआ आया और माँ से लिपटकर रोने लगा।

"मम्मी, दादाजी ने कहा था मारने को। मुझे माफ कर दो। मैं अब कभी तुम्हें नहीं मारूँगा। तुम जो कहोगी, वही करूँगा।"

माँ की आँखें नम हो गईं। उन्होंने अमित को अपने गले से लगा लिया।